By : प्रदीप कुमार नायक
- सच लिखने की मिली सजा
- चौथे स्तंभ पर हमला लोकतंत्र के लिए शर्मनाक
- राजनीति के गलियारे पर भ्रष्टाचार और दबंगई के दौर में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ इस समय बेहद नाजुक दौर से गुजर रही हैं।
बेगूसराय जिले में बेब पोर्टल चलाने वाले सुभाष महतो जैसे पत्रकार की गोली मारकर हत्या कर दी गई। घटना परिहारा ओ.पी. क्षेत्र के साखू गांव की हैं। पत्रकारिता के माध्यम से पत्रकार सुभाष द्वारा लगातार बालू माफियाओं के खिलाफ खबर चलाया जा रहा था। जिसके विरोध में पत्रकार सुभाष को अपराधियों ने सिर में गोली मारकर हत्या कर दी थी। एक पत्रकार की हत्या कर देना यह हत्या नही बल्कि पत्रकारिता जगत, अभिव्यक्ति की आज़ादी और लोकतंत्र की हत्या हैं।
यहाँ बताते चले कि बेगूसराय जिले में बालू माफिया द्वारा पत्रकार सुभाष महतो पर बालू माफिया द्वारा काम में बाधा उत्पन्न करने तथा सच को उजागर करने के आरोप में उन्हें अपराधियों ने गोली मारकर हत्या कर दिया। पत्रकारिता की दुनिया के लिए यह काले दिन हैं।जब बुलेट से कलम का कत्ल किया गया।जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सरेआम खून किया जा रहा हैं। सुभाष महतो जैसी एक निर्भिक, ईमानदार, बेवाक कलम के सिपाही पत्रकार की बेरहमी से खुलेआम अपराधियों ने गोली मारकर हत्या कर दिया। आखिर इस तरह हम कब तक केवल निन्दा और अफसोस करते रहेंगे।
यह हत्या और मारने की धमकी न थमने वाला सिलसिला आखिर कब थमेगा? कई खुलासों के बैंक तैयार करने वाले पत्रकार आम तौर पर सबूत जुटाने में कई लोंगो के निशाने पर हो जाते हैं। निशाना तब तक नहीं चूकता हैं, जब तक इन निशाने बाजों के हाथ कानून और व्यवस्था की पकड़ से ढीले नहीं किए जाते।यह वह कोण हैं जिसमें राजनीति गंदगी दिखाई पड़ती हैं।भारत में पत्रकारों को सबसे ज्यादा खतरा नेताओं से हैं।पिछले पच्चीस सालों में सबसे ज्यादा उन पत्रकारों की हत्या हुई जो राजनीति विट कवर करते थे। कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पिछले पच्चीस सालों में जिन पत्रकारों की हत्या हुई हैं, उनमें 47 दी राजनीति और 21 फीसदी बिजनेस कवर करते थे।
ये आंकड़े साबित करते है कि देश में पत्रकारों के खिलाफ नेताओं,माफियाओं और उधोगपतियों के अलावे धर्म के ठेकेदार का एक गगठजोड काम कर रहा हैं।पत्रकारों का हर वह शख्त दुश्मन होता हैं जिनके हाथ काले कारोबार से सने होते हैं।नेता, पदाधिकारी, माफिया, उग्रवादी, आतंकवादी, धर्म के ठेकेदार सभी के लिए पत्रकार आँख की किरकिरी बना रहता हैं। पत्रकार सुरक्षा कानून एक मात्र हथियार हैं, जिससे कलम के सिपाहियों की रक्षा हो सकती हैं। पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने के लिए हमें कोई ठोस कदम उठाने चाहिए। यह हमारे वजूद और अस्तित्व की लड़ाई हैं। चौथा स्तम्भ के वजूद को बचाने के लिए हम सभी पहल करें। दूसरी ओर कोई भी कानून क्यों नहीं आ जाय जब तक हम सभी पत्रकार एक नहीं होंगे, तब तक कुछ नहीं हो सकता।
कल किसी पत्रकार पर प्राथमिकी दर्ज हुई , धमकियां मिली तथा हत्या हुई आज सुभाष महतो जैसी जांबाज, निर्भिक, ईमानदार, बेवाक पत्रकार की खुलेआम बीच सड़क पर माफियाओं तथा अपराधियों द्वारा गोली मारकर हत्या कर दिया गया। कल किसी और का नंबर आएगा। यह सिलसिला शायद चलता ही रहेगा। कोई कुछ नहीं कर सकता। शायद हम मूकदर्शक बनकर यह सब सिर्फ और सिर्फ तमासा देखते ही रहेंगे। इस तरह अभिव्यक्ति की आज़ादी, कलम के सिपाहियों पत्रकार की खुलेआम हत्या कर दिया जायेगा। इसी तरह लोकतंत्र को गला घोंट-घोंटकर मार दिया जाएगा। कोई कुछ नहीं कर सकता। हम सिर्फ तमाशा देखते ही रहेंगे।
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