नव वर्ष के नए सूरज गुजरे हुए क्षण ही आने वाले दिनों के दिग्दर्शक हैं

संवाददाता : प्रदीप कुमार नायक


छोड़कर फिर कई सवाल,गया वर्ष ? पंख नोची हुई तितलियां हैं।रेत पर हांपति मछलियां हैं।धूप लेती हुई निढ़ाल गया वर्ष ? हर ओर धुंध हैं, कुहासा हैं, गांव-घर में बसी हताशा हैं, खून के सर्द हैं, उबाल गया वर्ष ? मानों कल की ही बात हो।जब हम सबने मिलकर 2022 के आने की खुशियां मनाई थी।जब हमारी कश्ती जीवन सागर में बहते-बहते आ पहुची हैं नव वर्ष के द्वार पर।फिर एक बार अबोध वर्ष अंगड़ाई ले रहा हैं।आशाओं की कासम किलकारियां गूंज उठी हैं।

शुभ संकल्पों की मीठी खनकती हंसी हर वर्ष की भांति वर्ष 2023 के सुभोमन चेहरे पर खिल उठी हैं।मानव स्वभाव ही ऐसा हैं, आता हुआ नया नवेला ताजगी व उत्साह से परिपूर्ण अनजाना।हमेशा सुहाता हैं, को लुभाता हैं, आकर्षित करता है और जाता हुआ देखा-समझा, जाँचा-परखा, पुराना उदासीनता को जन्म देता हैं।उदासीनता पर जो जिज्ञासा व मोह नए के प्रति होता हैं, पुराने के साथ नहीं रह पाता है।बीता वर्ष कितनी ही खूबसूरत सौगते सौप जाए,लेकिन लोभी मन कभी संतुष्ट नहीं होता।आने वाले वर्ष के लिए कही अधिक खूब सूरति के सपने अनजाने ही सजने लगते हैं।

हम सब पर अपनी गहरी छाप छोड़कर एक और काल खण्ड विदा हो रहा हैं।सफर के इस पड़ाव पर हमारा भावुक होना लाज़मी हैं।जब हमें कई साकार सपनों,दृश्य-अदृश्य उपलब्धियों व भावी योजनाओं की सौगात सौंपकर 365 दिन हमारा हम सफर रहा वर्ष 2023 अमूर्त होने जा रहा हैं।बहरहाल,मील के इस पत्थर पर खड़े हम भावुक हैं, तो उल्लसित भी।हम नए वर्ष के गले में बांहे डालकर यह सफर आगे बढ़ाएंगे।जाहिर हैं अगले 365 दिन हम नए संकल्प, सपनों व लक्ष्य के साथ एक और कालखण्ड नापेंगे।गुजरा वर्ष हमें कई सबक भी दे गया।जो भविष्य में हमारी रणनीति का आधार बनेगे।पिछले वर्ष इतना कुछ घटित हुआ,जिसे एक पल या एक पन्ने में नहीं समेटा जा सकता।फिर भी 2022 को विदा करते वक़्त कई यादे बरबस हमारें सामने आकर खड़ी हो गई।इन यादों में हमारे गर्व,शोक,शर्म व सबक पैबन्द हैं।

नए वर्ष के नए सूरज की लालिमा फैल चुकी हैं।संकताम्भ किरणे नूतन आभा मंडल में अपना सुरभित विस्तार कर चुकी हैं।सुकुमार प्रकृति अपने नव जीवन की उन्मुक्त अंगड़ाई ने सौंदर्य व सुहाड भविष्य का भावपूर्ण आवाहन कर रही हैं।सूर्य रथ का पहिया नए साल के सृजन व संरचना के उद्देश्य से गंतव्य के लिए निकल चुका हैं।ऐसे में संकल्पों का एक भाव विनम्र मुद्रा में अपनी दृढ़ता का व्रत दोहरा रहा हैं।तिथियों का एक मुकम्मल समूह हर वर्ष किसी न किसी इतिहास की रचना करता हैं।गुजरे हुए क्षण ही आने वाले दिनों के दिग्दर्शक बनते है।ऐसी तिथियों की परम्परा ही हमें समझदारी के संस्कार से जोड़ती हैं और उससे अनुभव प्राप्त कर हम अपने नए संकल्पों का तानाबाना बुनते हैं।

नव वर्ष के गवाक्ष से झांकते हुए हमें वे सारी तारीखे किसी मंजन की तरह दिखती हैं। जिनकी हद में हमनें कड़वाहड़ महसूस की।बेशक,गुजरे वर्ष के कुछ आखिरी दिनों ने हमें गहरे जख्म दिए।जख्मों का क्या,उनकी फितरत हैं वे भर जाएंगे।आज नहीं तो कल।किन्तु सवाल यह खड़ा होता हैं कि कही जख्मों का जुलूस हमारी अस्मिता को न लहूलुहान कर दे।ऐसी दशा में हमें तनकर खड़े होने,हालात से जूझने अस्मिता पर आंच न आने देने का दधीचि ब्रत लेना होगा।आइये,नव उषाकाल का अभिवादन करते हुए उम्मीदों का नया वितान तानने का संकल्प लें।

नव विहान के नए क्षितिज ने अभी अपना आकार लिया हैं।गुजरे वर्ष की तिथियां फिर किसी जुलूस सी गुजर गई।नई सुबह के असंख्य गवाक्षों से झरने वाली किरणों ने तनमन में आशाओं का नव संचार कर दिया हैं।विश्वास की एक भीत तैयार हो चली हैं।उसकी बुनियाद में बीते वर्ष की मिठास हैं तो कसैला पन भी।नई सुबह की दिशाओं ने बांहे फैला दी हैं संकोच के दायरे में कैद हवाओं ने अपना घेरा तोड़ दिया हैं।नए आकाश की तलाश में पक्षियों की अनगिनत छितराई किन्तु गोलबंद टुकड़ियों में विश्वास के नए पंख उग आए हैं।नदियों के नव निनाद के तन मन के भीतर नव स्फूर्ति का संचार कर दिया हैं।संभावनाओं का निस्सीन गगन उम्मीदों व नए उत्साह के उछाह से भर गया हैं।नव वर्ष की नूतन किरणों का जब हम स्वागत कर रहे होते हैं।उनके भीतर भी एक सवाल तिरता हुआ चलता है।जीवन मे उत्साह का यही भाव पूरे वर्ष बना रहे ।गीतों को लय जैसी खुशी मिले और सपनों को शब्दों सा आकार।

सूरज ने धरती के आंचल पर बिखेर दी उजास।पहाड़ी के नीचे तालाब में खिले कमलों पर भंवरों ने छेड़ दी नई सुरीली तान।गुरुकुल में बटुकों ने शुरू किए मन को संकृत कर देने वाले वेदमंत्र।गौशाले में दूध पीते बछड़े को दुलार रही गाय।कंधे पर हल धरे बैलों की जोड़ी लेकर खेत को निकल पड़ा अन्नदाता।गंगा की लहरों से अठखेलियाँ करने लगी नाविक की नाव।अरे,सुबह तो हो गई।नव प्रभात हो गया।परिंदों की चहचाहट से गूंज उठा नव वर्ष। कितनी नित्य,निर्मल,निश्चल,निर्विकार,निरूपम, सूरज की रोशनी नदी की लहरों से टकरा रही हैं।संगम की जीरो से बात कर रही हैं।यह संघर्ष का निनाद हैं।मंदिरों में बज रही घंटियों के स्वर जागृत कर रहे हैं।कर्तव्य की ओर मुड़ने को मस्जिद की अजान प्रेरणा हैं आगे बढ़ने को।जीवन मे हर सुबह नई हैं।हर सुबह प्रेरणादायक हैं।आशा व उम्मीद से भरी हैं।हर रोज कुछ न कुछ नया करना हैं।प्रगति के पथ पर आगे बढ़ना हैं।नए जीवन का सृजन करना हैं।कर्तव्य का दायरा बढ़ाना है।सृजन के स्रोत को अक्षुण्ण रखना हैं।

दरअसल नव वर्ष आ गया हैं।बीते वर्ष हमने तमाम संकल्प लिए थे।कुछ सपने बुने थे।कुछ पूरे हुए कुछ काल कबलित हुए।इसका मतलब यह नही कि संकल्प या सपने पूरे नही हुए।उन्हें हम यूँही नियति मानकर छोड़ दे।उसको पूरा करने के लिए निरंतर प्रयास करना होगा।नई योजनाएं व नए संकल्प भी लेने होंगे।कुछ नए सपने देखने होंगे जो समष्टि के लिए कल्याणकारी हो। स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकारिता क्षेत्र से जुड़े प्रदीप कुमार नायक का मानना हैं कि चिंतन से बड़ी होती हैं योजनाएं,योजनाओं से बड़ा होता हैं प्रयास,प्रयास से बड़ा होता हैं संकल्प और संकल्प से बड़ा होता हैं आत्म विश्वास।इसलिए नव वर्ष में आत्म चिंतन के साथ नई योजनाएं बनानी होगी उन्हें पूरा करने का प्रयास करना होगा।संकल्प लेना होगा।तभी संकल्प पूरा होगा,जब आत्म विश्वास होगा।हमें आत्म विश्वास बनाएं रखना होगा।नव वर्ष में उम्मीदों की नई रोशनी दिख रही हैं।

हमारा अस्तित्व केवल हमारे प्राण व शरीर के कारण नहीं है।हमारा अस्तित्व तो हमारे श्रम व पराक्रम के कारण हैं।किसी व्यक्ति या राष्ट्रीय के जीवन मे कभी यह अवसर आता हैं कि वह अपने देश के लिए युध्द करें।देश के अस्तित्व में मेरा भी अस्तित्व हैं।यहाँ विकल्प की कोई बात ही नहीं है।अहिंसा परमोधर्मः की बात तो किसी को आकारण पीड़ित करने के संदर्भ में खरी उतरती है हम किसी को आकारण चोट न पहुचाएं।लेकिन जब कोई मुझ पर आक्रमण करता हैं तो युध्द करना ही धर्म हो जाता हैं।उनके मन मे छीना-झपटी ही समाई रहती हैं।वे अपनी कमाई में विश्वास नही करते हैं।दुसरो का छीनकर खाना चाहते हैं अगर दूसरे से छीनने का दम नही हैं, तब भी चोरी छिपे कुछ न कुछ लेना चाहते हैं उन्हें दुसरो को किसी न किसी तरह से तंग करने की आदत होती है।ऐसे गए-गुजरे लोग पीड़क होते हैं।दूसरों का छीनकर खाना चाहते हैं।ऐसे लोगों को ठीक से पहचानने के लिए सूरज निकला है।

मैंने सुबह के सूरज को कई तरह से देखा हैं।आज इस तरह से देख रहा हूं।ऐसा जीवन मे कभी-कभी होता है।एकबार आत्म रक्षा के लिए युध्द कर लेने के बाद विरोधी से मुक्ति मिल जाती हैं।सूरज आकाश से निकलता है और अंधेरा को भगाता हैं।कभी-कभी बदल उसे घेरता हैं।सुराज उसे भी फाड़कर निकलना चाहता हैं।कभी कुछ क्षणों में वह चमक उठता हैं।कभी संघर्ष में कुछ समय लगता हैं।लेकिन सूरज तो सूरज हैं।उसका प्रकाश सबसे ऊपर हैं।इसी तरह हम अपनी आज़ादी के लिए संघर्ष करते हैं तो हमारी वाणी,हमारा देश,हमारी सम्पति व हमारा सम्पूर्ण अस्तित्व स्वतंत्र हैं।स्वतंत्रता ही हमारा जीवन हैं।आज मैं आकाश में निकलते हुए सूरज को देखकर बहक गया हूँ क्या ?

जीवन में मुझे सुबह के सूरज से बहुत लगाव हैं उसने बहुत प्रेरित किया हैं।मैंने जबभी समस्याओं से चोट खाई हैं या जीवन में किसी रास्ते की तलाश करनी चाही तो इसी सूरज ने रास्ता दिखाया है।सूरज ने ही समस्याओं के मकड़जाल को समाप्त करके मुझे बाहर निकाला है।आज बहुत बड़ी समस्या लेकर सूरज के सामने आ गया हूँ।यह समस्या मेरे अस्तित्व व मेरे देश की रक्षा का हैं।ऐसे लोग बहुत होंगे, जिन्हें केवल धन से प्यार हैं।ऐसे लोग अब बहुत हैं जिन्हे केवल अपना मजहब प्यारा हैं।इन लोगों को धन मिल जाय,अपने धर्म का प्रचार अधिक से अधिक हो जाय,बस उनके लिए सब कुछ हो गया लेकिन मुझ जैसे लोगों को तो केवल अपना देश प्यारा हैं इस समय दुःख विनाशक व सुख स्वरूप सूर्य का ध्यान कर रहा हूं सूर्य हर तरह से मेरा कल्याण करने वाला हैं।वह भयंकर अंधेरी रात के बाद जीवन व ज्ञान देने के लिए आता हैं।सूर्य प्रकृति की बहुत बड़ी शक्ति हैं।

लेखक - स्वतंत्र लेखक एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, समाचार पत्र एवं चैनलो में अपनी योगदान दे रहे हैं। मो. 8051650610

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